नमस्कार दोस्तों। All Travel Story में आज Shakumbhari Devi Temple, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश की अपनी यात्रा के बारे में बता रहा हूँ। नया साल 2020 सबके लिए ढेरों खुशियाँ लेकर आये। नए साल के आगमन पर सभी की तरह मेरा भी मन हो रहा था की नये साल की शुरआत भगवान के दर्शन से की जाये। परन्तु कहां जाये ये decide नहीं हो पा रहा था। फिर अपने एक जानकर से सलाह की उसके बाद हमारा कार्यक्रम अगले दिन शाकम्भरी देवी के दर्शन का बना।
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Siddhpeeth Shri Shakumbhari Devi Ji
शाकम्भरी देवी एक सिद्धपीठ है। यह सहारनपुर में मुख्य दार्शनिक स्थान हैं । यहाँ पर श्रद्धालु दूर दूर से दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर सहारनपुर स्टेशन से लगभग 40 km की दूरी पर देवाला, ताजपुरा, बेहट होते हुए जसमौर नामक स्थान पर स्थित हैं।
“शाकंभरी देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं।
मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में लिखी कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया हुआ था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था। तब आदिशक्ति मां दुर्गा, मां शताक्षी देवी के रूप में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां ने दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार जब तक सारे संसार में वर्षा नही हुई थी। उस समय शीताक्षी देवी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक ( साग- सब्जी) द्धारा संसार का पालन किया। इसी प्रकार से वह पृथ्वी पर शांकुम्भरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।”
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Saharanpur to Shakumbhari Devi Temple
अगले दिन सुबह तय समय अनुसार हम दोनों ने सर्दी में ठंड का सामना करते हुए Bike से अपनी यात्रा शुरू की । हमारी ये यात्रा सहारनपुर से शुरू हुई । हमारा एक और दर्शनीय स्थान पर जाने का plan बन रहा था जहाँ पर रेल से जाना था तो हम पहले सहरानपुर रेलवे स्टेशन पर अपनी टिकट कन्फर्म करने के लिए गए क्योंकि यात्रा आज रात को ही करनी थी तो टिकट तत्काल में भी संभव ना हो सका।
काफी भागदौड़, local travel agents और सारी सोशल जानकारी लगाने के बाद भी कन्फर्म टिकट ना मिल सका। तो फिर हमने अपना वह plan postpone किया और करीब 1 घंटा यहाँ लगाने के बाद वापस हमने अपनी माता शाकम्भरी देवी की यात्रा शुरू की।
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यात्रा पर जाना था तो नाश्ता सुबह जल्दी कर लिया सो अब भूख लगने लगी । हम दोनों रास्ते के किनारे देखते हुए चल रहे थे की कहीं कुछ खाने को मिल जाए।
और जल्दी ही हमारी तलाश पूरी हुई और एक चाट समोसे की दुकान पर bike रोक दी। हमारे लिए वह दुकान नयी थी और वहां के समोसे का स्वाद कैसा होगा इसमें भी confusion था। तो हमने एक एक समोसे का आर्डर दिया की अगर ठीक लगा तो दूसरा लेंगे।
शहर से हट कर छोटे कस्बो में same खाने की चीज का परोसने का और उसका स्वाद लग ही रहता हैं। जो कुछ को पसंद आ भी सकता हैं और कुछ को नहीं भी। इसलिए हमने पहले single समोसे का आर्डर दिया ।
लगभग 10 मिनट के अंदर ही हमारी मेज पर दो प्लेट समोसे थे। उनको परोसने का तरीका अलग था। समोसे को प्लेट में तोड़कर ऊपर से मसाला , मीठी चटनी और दही डाला हुआ था। अब समोसा गर्म और ऊपर से ठंडी चटनी और दही, तो अलग ही combination था स्वाद का। तो अब हमने इसको खाते खाते ही एक एक प्लेट का आर्डर और दिया। अब पेट की आग थोड़ी शांत हुई। हमने 4 समोसे के 60 रु दिए और यात्रा शुरू की।
हम लगभग 30 km चल चुके थे अब तक मैं पीछे बैठा हुआ पर आगे की यात्रा मैं driver के role में आ गया। हम बेहट रोड से होते हुए अपनी मंजिल की ओर जा रहे थे। चलते चलते हम सुनसान रास्ते पर पहुँच चुके थे जहां पर केवल कुछ ही वाहन नज़र आ रहे थे। अब क्यूंकि मेरे साथी पहले भी यहाँ आ चुके थे तो मुझे रास्ते से भटकने की tension नहीं थी। जैसा जैसा वे बता रहे थे मैं Bike को left & right कर रहा था।
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कुछ समय बाद हम एक मंदिर पर पहुंचे परन्तु वहां कुछ गिने चुने ही लोग थे तो मुझे थोड़ा अजीब लगा की माता शाकम्भरी के मंदिर में इतने कम श्रद्धालु। पर मेरे साथी ने बताया की यह माता के सेवक “बाबा भूरा देव” का मंदिर हैं और ऐसी मान्यता हैं की माता के दर्शन से पहले इनके दर्शन करने होते हैं। वहीँ पर हमने पास में Bike park की और एक प्रसाद की दुकान से प्रसाद लिया। और बाबा भूरा देव के दर्शन किये।
वहां से मुख्य मंदिर लगभग 1.5 km की दुरी पर था। थोड़ा आगे चलने पर देखा की रोड़ खत्म हो चुकी और हम सुखी हुई नदी के रास्ते को पार कर रहें थे। मेरे साथी ने बताया की बरसात के समय में माता के दर्शन बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि सामने पहाड़ से आने वाले पानी से यह पूरा रास्ता डूब जाता हैं। देखकर भी ऐसा ही लग रहा था क्योंकि हम गोल गोल पत्थरों पर अपना 2 पहियां वाहन चला रहे थे।
कुछ ही मीटर आगे हमे धर्मशाला, फिर वहां की local market नज़र आने लगी । ध्यान से देखा तो left side में market के पीछे मंदिर नज़र आ रहा था। एक प्रसाद की दुकान के पास हमने अपनी bike खड़ी की, जूते उतारें, हाथ धोये, प्रसाद लिया और मंदिर की तरफ चल दिए।

मंदिर में ऊपर की तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं और बीचों बीच रैलिंग लगी हुई हैं। ऐसा अक्सर सभी मंदिरों में होता हैं परन्तु यहाँ मैं इसलिए बता रहा हूँ की मंदिर में सामने तीन देवियों (भीमा, शताक्षी तथा शाकंभरी) की बड़ी मूर्ति और एक छोटी मूर्ति (गणेश जी) की लगी हुई हैं परन्तु सीढ़ियों की रैलिंग के हिसाब से हमें सामने केवल दो ही देवियों के दर्शन होंगे। सभी के दर्शन के लिए हमे अपनी जगह बदलनी पड़ेगी। परन्तु भीड़ कम होने ओर दोपहर का समय होने के कारण हमे अच्छे से दर्शन हुए पांचो मूर्तियों के । एक मूर्ति left side में भी थी।
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दर्शन करने के बाद हम वापस नीचे उतर आये और आसपास की प्रकृर्ति को देखने लगे। पास में ही पहाड़ को देखकर लग ही नहीं रहा था की हम सहारनपुर की सीमा में हैं। यहाँ पर कुछ फोटो clicks किये।
यहां पर एक बात बड़ी अजीब लगी की सब जगह लिखा था “आज्ञा से: राणा परिवार, जसमौर” । और दूसरा सवाल मन में था की शाकम्भरी देवी का इतिहास क्या है। इन्ही दो सवालों के जवाब ढूढ़ने के लिए हम चाय पीने के बहाने एक चाय की दुकान पर गए और दो चाय का ऑर्डर दिया और साथ ही साथ अपना दूसरा सवाल पहले दाग दिया। पर अब हमें और भी हैरानी हुई जवाब जानकर की वहां के local चाय वाले को देवी का इतिहास नहीं पता था। उसने किसी और की तरफ इशारा करते हुए कहा की ये हमारे दुकान के मालिक हैं ये बता सकते हैं पर उनका भी यही जवाब था, पर उन्होंने हमे पास लगी हुई मार्किट से किताब लेने की सलाह दी।

हमने बिना इच्छा के चाय पी, पैसे दिए और मार्किट की और चल दिए। वहां एक दुकान से 20 रु की किताब ली। किताब विक्रेता की उम्र करीब 50+ थी उनसे भी हमने वही सवाल किया लेकिन उनका भी वहीं जवाब था। ये सब जानकर मैं काफी हैरान था। खैर हमने किताब ली और बाद में घर आकर इसे पढ़ा।
लेकिन चाय वाले ने हमें जसमौर के राणा परिवार के बारे में जानकारी दे दी थी की उनका नाम सभी जगह क्यों लिखा हैं। उसके अनुसार ये सारी जगह मंदिर सहित उनकी रियासत में आती हैं और इसका विवाद कोर्ट में भी चल रहा हैं। रियासत शब्द सुनकर हैरानी हुई की आज भी ऐसा कुछ हैं।
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मंदिर जाते हुए हमने रास्ते में पंचमुखी हनुमान जी के मंदिर की तरफ जाने वाला रास्ता देखा था। जहाँ पर अब वापसी में दर्शन करने थे। ये मंदिर भी माता के मंदिर के रास्ते में ही हैं। यहाँ पर हनुमान जी के पाँचो मुखों की प्रतिमा और उनके नाम लिखे हुए हैं। यहां पर दर्शन के बाद अब हम वापस अपने घर की तरफ चल दिए।
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यहाँ से हम वापस चल दिए पर अभी घर पहुंचने में करीब 2 घंटे का समय लगना था। तो रास्ते में ही लंच करने का decide हुआ। काफी जगह पर खाने का option था पर सब जगह केवल समोसे, छोले चावल आदि थे पर हमारा मन रोटी खाने का था और भी तवे की।

कुछ km चलने के बाद बेहट रोड़ पर गोयल होटल दिखा। Bike park करने से पहले ही हमने पूछ लिया की रोटी तवे की हैं या तंदूर की। उनकी confirmation के बाद ही Bike park की और हाथ मुँह धोकर बैठ गए। वहीं अपना नयी जगह वाला confusion की खाना और स्वाद कैसा होगा। ऐसा सोचकर केवल एक दाल का ही ऑर्डर दिया । परन्तु यहाँ खाना ठीक था तो एक दाल का ऑर्डर और दिया।
खाना थोड़ा spicy था और वहां पर icecream का fridge देखकर एक एक icecream भी ली। परन्तु जैसे ही bike पर अपनी यात्रा शुरू की और मौसम भी अब ठंडा हो चुका था शाम के लगभग 4 बज रहे थे तो icecream ने और भी ठण्ड का एहसास करवा दिया।
शाम के 6 बजे हम दोनों ठण्ड में ठिठुरते हुए अपने घर पहुंचे और आते ही सबसे पहले चाय पी। तब जाकर शरीर में कुछ जान आयी।
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Conclusion
वैसे तो इसमें निष्कर्ष वाली कोई बात नहीं है। माता के दर्शन अच्छे से हो गए और नए साल की आप सभी को शुभकामनाएं ।
आपकी किसी भी तरह की जानकारी या comments का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद
एक शानदार पोस्ट बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने शाकुंभरी देवी मैं 1 साल में दो या तीन बार आता रहता इस मंदिर के आसपास यात्रियों के रुकने के लिए कुछ भी नहीं है प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए
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