Pura Mahadev Mandir

Pura Mahadev, पुरामहादेव मंदिर

नमस्कार दोस्तों। आज की मेरी All Travel Story की यात्रा Pura Mahadev Mandir के दर्शन की है जिसे परशुराम के महादेव और Parshurameshwar Mahadev Mandir भी कहते हैं । यह एक प्राचीन सिद्धपीठ है । ऐसा माना जाता है की स्वयं परशुराम जी ने अपनी माता का सिर काटने के पश्चाताप में यहां शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या की थी । भगवान् शंकर ने प्रसन्न् होकर उनकी माता को जीवित किया था और परशुराम जी को अजेय फरसा दिया था। ये मेरी देवी शाकुम्भरी के बाद की अगली यात्रा है।

Pura Mahadev Mandir बागपत उत्तर प्रदेश के बालौनी कस्बे के पुरा गांव में प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर हैं। पहले समय में यहां कजरी वन था जिसमें ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका और चार पुत्रों सहित रहते थे।

वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालु हर रोज़ दर्शनों के लिए आते हैं परन्तु महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां जल चढ़ाने का बहुत महत्व हैं।

पुरा महादेव की यात्रा मेरी और मेरे एक जानकर के साथ 15 जनवरी 2020 को सहारनपुर से मोटरसाइकिल से सुबह 10 बजे आरम्भ होती है । प्लान तो हमारा 9 बजे चलने का था परन्तु घना कोहरा होने के कारण 10 बजे शुरआत की । परन्तु कुछ आगे जाकर ही अहसास हो गया की अभी ओर रुकना चाहिए था क्योंकि कोहरे के कारण हेलमेट के शीशे में से कुछ नज़र नहीं आ रहा था और सहारनपुर से मंदिर करीब 120km था और हमें उसी दिन वापस आना था तो रुक भी नहीं सकते थे ।

हमारी बाइक करीब 30-40 की रफ्तार से भी मुश्किल से चल पा रही थी । मैं और मेरे जानकर दोनों इस घने कोहरे में बाइक पर अपनी सीट बदल रहे थे । कभी वो चलाते तो कभी मैं । समस्या 120 km की नहीं थी समस्या थी की कोहरे की कारण हेलमेट का शीशा खोलकर ड्राइव कर रहे थे जिससे की वापसी तक हमारी दोनों की आँखों ने जवाब देना शुरू कर दिया था। धुल मिट्टी और ठंडी हवा के कारण क्योंकि हम दोनों को ही हेलमेट पहनकर ड्राइव करने की आदत है ।

Google Map की मदद से हम शामली , मेरठ करनाल रोड़ होते हुए 12:30 बजे मंदिर पहुंच गए । जैसा की सुना था की यहाँ बहुत भीड़ रहती हैं पर महादेव की कृपा से आज बिलकुल भी भीड़ नहीं थी । हमने मंदिर के बाहर ही एक तरफ अपनी bike park की, पूजा का सामान लिया ।

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Pura Mahadev Temple

सड़क से मंदिर में प्रवेश के लिए करीब 20-25 सीढ़ियां बनी हुई हैं उसके बाद एक गलियारा और सामने पुरा महादेव जी का मुख्य मंदिर जिसमे शिवलिंग के दर्शन बाहर से ही कर सकते हैं। मंदिर में अंदर दर्शन करने और पूजा करने के बाद हमने मंदिर के प्रांगण को देखा ।

Pura Mahadev Mandir ka itihas

पुरा महादेव के इतिहास के अनुसार प्राचीन समय में इस जगह पर कजरी वन था जिसके आश्रम में ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका और चार पुत्रों सहित रहते थे।

एक दिन ऋषि जमदाग्नि अपने आश्रम में नहीं थे उनकी अनुपस्थिति में हस्तिनापुर के राजा सहस्त्रबाहु जंगल में शिकार खेलते हुए उनकी कुटिया में आये। ऋषि की अनुपस्थिति उनकी पत्नी रेणुका जी ने उनका अपनी कामधेनु गाय की कृपा से अच्छा आवभगत किया। ये देखकर राजा के मन में गाय के प्रति लालच आ गया और वह उसे बलपूर्वक अपने साथ ले जाने लगा। जिसका रेणुका जी ने विरोध किया। 

तो क्रोध में राजा रेणुका जी को ही बलपूर्वक अपने महल ले गया और कमरे में बंद कर दिया। जिन्हें अगले दिन राजा की पत्नी ने चुपके से आज़ाद कर दिया। रेणुका जी सीधा अपने पति के पास आयी और सारी बात बताई। पर ऋषि जमदाग्नि ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया क्योंकि उनके अनुसार रेणुका जी एक रात पराये पुरुष के घर रहीं थी। और उन्हें आश्रम से चले जाने को कह दिया। 

रेणुका जी ने आश्रम से जाना स्वीकार नहीं किया तो क्रोधित ऋषि ने अपने पुत्रों से माता का सर काटने के लिए कहा जिसे तीनों बड़े पुत्रों ने मना कर दिया। परन्तु पिता की आज्ञा से परशुराम जी ने अपनी माता का सर काट दिया।

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Pura Mahadev ka Shivling

इस कृत्य का पश्चाताप करने के लिए उन्होंने पास ही में शिवलिंग की स्थापना की और घोर तपस्या की। जिसके फलस्वरूप शिवजी ने दर्शन दिए और वरदान में उनकी माता को जीवन दान दिया और साथ में ही अजेय परशु (फरसा) भी दिया। 

इसी फरसे से ऋषि परशुराम जी ने राजा सहस्त्रबाहु को मारा और 21 बार पृथ्वी को अत्याचारी राजाओ से मुक्त किया। 

जिस स्थान पर शिवलिंग स्थापित किया उसी स्थान पर बाद में एक रानी के द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया।

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Temple Damaged by Aurangzeb

पुरानी कथाओं के अनुसार एक बार मुग़ल राजा औरंगजेब ने पुरा महादेव को तोड़ने की कोशिश की। शिवलिंग तो नहीं टुटा परन्तु इस पर चोट के काफी निशान बन गए और शिवलिंग थोड़ा सा टेढ़ा भी हो गया जिसे हम आज भी देख सकते हैं।

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YouTube Video

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