प्रिय पाठकों आज का ब्लॉग मेरी इस All Travel Story Site पर पर्यटक स्थल हरिद्वार Haridwar, Uttarakhand राज्य का एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है, जहाँ गंगा नदी हिमालय के गौमुख से 253 किलोमीटर तक बहने के बाद मैदानी क्षेत्र में आती है। कई पवित्रघाटों में सबसे बड़ा घाट हर की पौड़ी है। जहाँ सायं काल गंगा आरती का आयोजन होता है जिसमें छोटे-छोटे टिमटिमाते दीप जलाए जाते हैं। इस क्षेत्र मे अन्य धार्मिक स्थल जैसे हर की पौड़ी, मनसा देवी, चंडी देवी, माया देवी आदि है जिनका विस्तृत वर्णन नीचे किया हुआ है।
हरिद्वार को हरद्वार भी कहा जाता है, ये भारत के राज्य उत्तराखंड का एक प्राचीन शहर है। हरि का अर्थ है “भगवान विष्णु”। तो हरिद्वार का अर्थ “भगवान विष्णु का प्रवेश द्वार” है। भगवान विष्णु का मंदिर जोकि की चार धामों में से एक, बद्रीनाथ पहुंचने के लिए हरिद्वार, तीर्थ यात्रा शुरू करने के लिए एक विशिष्ट स्थान है।
दूसरी ओर, संस्कृत में, हर का अर्थ है “भगवान शिव” और द्वार का अर्थ है “द्वार” या “प्रवेश द्वार”। इसलिए, हरद्वार का अर्थ “भगवान शिव का प्रवेश द्वार” है। भगवान शिव के केदारनाथ, उत्तरी ज्योतिर्लिंग और Kailash पर्वत तीर्थ यात्रा और गौमुख जो की गंगा नदी के उद्गम स्थल में से एक है, पर पहुंचने के लिए, तीर्थयात्रा शुरू करने के लिए हरद्वार एक विशिष्ट स्थान है।
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पौराणिक महत्व : हरिद्वार Haridwar, Uttarakhand
पुराणों में इसे गंगाद्वार, मायाक्षेत्र, मायातीर्थ, सप्तस्रोत तथा कुब्जाम्रक के नाम से वर्णित किया गया है। प्राचीन काल में कपिलमुनि के नाम पर इसे ‘कपिला’ भी कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ कपिल मुनि का आश्रम था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगीरथ ने, जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने 60,000 पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर लाये ।
समुद्र मंथन
हरिद्वार Haridwar, Uttarakhand को हिंदुओं के सात पवित्रतम स्थानों (सप्तपुरी) में से एक माना जाता है। समुंद्र मंथन के अनुसार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज ( इलाहाबाद ) के साथ हरिद्वार चार स्थानों में से एक है जहॉं पौराणिक हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब धन्वन्तरी उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे।
कुंभ मेला
यहाँ कुंभ मेले का आयोजन होता है, जो हर 12 साल में हरिद्वार में मनाया जाता है। Haridwar कुंभ मेले के दौरान, लाखों श्रद्धालु, और पर्यटक हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर स्नान करने और अपने पापों को दूर करने के लिए और मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं। ब्रह्माकुंड, जिस स्थान पर अमृत गिरा था, वह हर की पौड़ी और हरिद्वार का सब से पवित्रघाट माना जाता है।
यह कावंड़ तीर्थयात्रा का प्राथमिक केंद्र भी है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा से पवित्र जल इकट्ठा करते हैं और इसे सैकड़ों मील तक ले जाकर शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। सावन का महीना अभी शुरू होने वाला अतः कावड़ के बारे मे विस्तृत वर्णन आने वाले ब्लॉग में मिलेगा।
हरिद्वार Haridwar, Uttarakhand होते हुए चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री की यात्रा इस मार्ग से की जाती है,
हिंदू परंपराओं में, हरिद्वार के भीतर ‘पंच तीर्थ’ (पांच तीर्थयात्रा), “गंगाद्वार” (हर की पौड़ी), कुशावर्त घाट, कनखल, बिल्व तीर्थ (मनसा देवी मंदिर) और नील पर्वत (चंडी देवी मंदिर) हैं।
धार्मिक स्थल : हरिद्वार
हर की पौड़ी – Har Ki Pauri
एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। ‘हर की पौड़ी’ हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत और बाहर से भी भक्तों और तीर्थयात्री त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है।
इस पवित्र घाट का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भर्तृहरि की याद में करवाया था। ऐसा माना जाता है कि भर्तृहरि हरिद्वार आए और उन्होंने पवित्र गंगा के तट पर ध्यान किया। जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके भाई ने उनके नाम पर एक घाट का निर्माण कराया, जिसे बाद में हर की पौड़ी के नाम से जाना जाने लगा।
हर की पौड़ी ( भगवान हर या शिव के चरण ) में देवी गंगा को अर्पित की जाने वाली शाम की प्रार्थना (आरती) किसी भी श्रद्वालु के लिए एक आत्मिक अनुभव है। सायं आरती के बाद, तीर्थयात्री अपने मृतक पूर्वजों का स्मरण करते हुए दीपक के साथ फूलों की नाव और नदी पर धूप लगाते हैं।
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चण्डी देवी मन्दिर – Chandi Devi
स्कंद पुराण में एक पौराणिक कथा का उल्लेख है, जिसमें एक स्थानीय दानव राजा शुंभ और निशुंभ के सेना प्रमुख चण्ड-मुंड को देवी चंडी ने यहां मार दिया था, जिसके बाद इस स्थान को चंडी देवी नाम मिला। ये गंगा नदी के पूर्वी तट पर ‘नील पर्वत’ पर विराजमान हैं। यह माना जाता है कि मुख्य प्रतिमा 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी। चंडी मंदिर घाट से 3 किमी की दूरी पर है और एक रोपवे के माध्यम से भी पहुंचा जा सकता है।
मनसा देवी मन्दिर – Mansa Devi Temple

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यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है जिसका शाब्दिक अर्थ है मनोकामनाओं को पूरा करने वाली देवी (मनसा) और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं। एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ, त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है।
इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है। पर्यटक इस मंदिर तक केबल कार द्वारा पहुँच सकते हैं। केबल कार यहाँ ‘देवी उड़न खटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
माया देवी मन्दिर – Maya Devi Temple
हरिद्वार को पहले मायापुरी के नाम से जाना जाता था जो देवी माया देवी के कारण है। माया देवी के इस प्राचीन मंदिर को सिद्धपीठों में से एक माना जाता है और कहा जाता है कि वह स्थान जहाँ देवी सती का हृदय और नाभि गिरी थी। यह हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर और भैरव मंदिर के साथ खड़े कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है
“मनसादेवी”, “माया देवी” और “चंडीदेवी” शक्तिपीठ कि एक विशेषता यह भी है तीनों को मिलकर एक त्रिभुज का निर्माण होता है

दक्षेश्वर महादेव मंदिर, कनखल – Kankhal
दक्ष / दक्षेश्वर महादेव मंदिर ( Daksha Mahadev Temple ) कनखल हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित है | हरिद्वार की उपनगरी कहलाने वाला ‘कनखल’ हरिद्वार से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित है।
कनखल को भगवान शिवजी का ससुराल माना जाता है क्यूंकि दक्षेश्वर महाराज की पुत्री ( देवी सती ) का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था एवं दक्षेश्वर महाराज इसी स्थान में निवास किया करते थे | इस मंदिर के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि दक्षेश्वर महाराज ने एक बार एक यज्ञ आयोजित किया था और इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन दक्षेश्वर महाराज ने भगवान शिवजी को आमंत्रित नहीं किया |

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यह बात जानकर भगवान शिव की पत्नी सती को बेहद दुःख हुआ और उसी यज्ञ में आकर भगवान शिव की पत्नी सती ने अपना शरीर यज्ञ कुण्ड मे त्याग दिया | इस बात से वीरभद्र ( जोकि भगवान शिव के गौत्र रूप माने जाते है ) उन्होंने दक्षेश्वर महाराज का “सर” धड से अलग कर दिया | लेकिन भगवान शिव ने दक्षेश्वर महाराज को जीवन दान दिया और उन्होंने दक्ष प्रजापति के कटे हुए सर पर “बकरे का सर” लगा दिया और भगवान शिव ने दक्षेश्वर महाराज से यह वादा किया कि इस मंदिर का नाम हमेशा उनके नाम से जुड़ा रहेगा। इसलिए इस मंदिर का नाम है “दक्षेश्वर महादेव मंदिर” ( Daksheshwar Mahadev ) है।
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भीमगोडा टैंक – Bhimgoda Tank
भीमगोडा टैंक हरिद्वार शहर में हर की पौड़ी के पास स्थित एक छोटा तालाब है। भीमगोडा टैंक हरिद्वार शहर के प्रमुख पर्यटक आकर्षण में से एक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह तालाब पांडव भाइयों के भीम द्वारा बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव हरिद्वार से होते हुए हिमालय जा रहे थे, तब भीम ने अपने घुटने (गोडा) को जोर से जमीन पर गिराकर यहां की चट्टानों से पानी निकाला।
वैष्णों देवी मंदिर, भारत माता मंदिर, एवं पिरान कलियर कुछ अन्य धार्मिक स्थल हैं। इसमें हरिद्वार का वैष्णों देवी मंदिर एक नवनिर्मित पवित्र स्थल है जो जम्मू के प्रसिद्ध वैष्णों देवी मंदिर के जैसा बनाया हुआ है। जैसा कि जम्मू में वैष्णों देवी मंदिर तक पहुँचने का रास्ता है। उसी तरह से यहॉं का रास्ता भी सुरंगों एवं गुफाओं से भरा हुआ है।
भारत माता मंदिर एक बहुमंजिला मंदिर है जो भारत माता को समर्पित है। भारत माता मंदिर का उद्घाटन 15 मई 1983 को इंदिरा गांधी द्वारा गंगा नदी के तट पर किया गया था। इस मंदिर की ऊँचाई 180 फीट (55 मीटर) है। इस मंदिर में आठ मंजिलें है जिसमें से प्रत्येक मंजिल कई हिंदू देवी देवताओं एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित है।
शैक्षिक एवं औद्योगिक – Haridwar, Uttarakhand
प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के अलावा यह स्थल औद्योगिक दृष्टि से भी विकसित है। यहाँ भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स इंडिया और सिडकुल State Infrastructure and Industrial Development of Uttarakhand Ltd भी स्थापित है। यहाँ वह स्थान भी है जहाँ भारत का पहला तकनीकी संस्थान रूड़की विश्वविद्यालय या IIT Roorkee स्थापित किया गया है।
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हरिद्वार कैसे जाएं
यात्री वायुमार्ग, रेलमार्ग या सड़क रास्ते द्वारा हरिद्वार पहुँच सकते हैं।
- इस स्थान का सबसे निकटतम घरेलू हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो लगभग 20 किमी दूर स्थित है। यह दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी नियमित उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है।
- सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन है,जो भारत के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
- देश के विभिन्न भागों से बसों द्वारा भी यहाँ पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा ISBT कश्मीरी गेट तथा आनंद विहार, दिल्ली से हरिद्वार के लिए नियमित अंतराल पर रोडवेज़, निजी और डीलक्स बसें उपलब्ध हैं।
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bahut hi sundar lekh sir. beautiful content keep writing
Aapka Bahut Bahut Dhanyawad.